Burari Ka Itihas | बुराड़ी गांव का ऐतिहासिक महत्व
बुराड़ी गांव दिल्ली के कई बड़े गावों में से एक है | बुराड़ी, ऐसा नहीं कि इसकी कोई ऐतिहासिक महत्ता न हो, यह गाँव अपने आप में एक इतिहास समेटे है।
उत्तरी दिल्ली में यमुना नदी के किनारे बसे बुराड़ी गांव का इतिहास कम से कम 5000 वर्ष पुराना और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है ।
अगर आप बुराड़ी गांव के ऐतिहासिक महत्व को जानना चाहते हैं तो आपको बुराड़ी गांव में स्थित प्राचीन खांडेश्वर शिव मंदिर के बारे में जानना होगा ।
बुराड़ी का प्राचीन इतिहास
गाँव के बीचो बीच खाण्डेश्वर मंदिर आज भी अपनी महिमा दर्शाता हुआ लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। इस मंदिर का आज के परिवेश में गांव-वासियों ने मिलकर जीर्णोद्धार कर दिया है जो देखने में बहुत सुन्दर है।
इस मंदिर का उल्लेख श्रीमद्भागवत गीता, महाभारत काल और वेद – पुराण में भी आया है । प्राचीन काल में यह जगह खाण्डेश्वर वन के नाम से प्रसिद्ध थी और वर्तमान दिल्ली उस समय पर खांडवप्रस्थ के नाम से जाना जाता था।
महाभारत काल में, खांडव वन पांडवों के हिस्से में आये थे। अग्नि देवता की सहायता से, पांडवों ने इन वनों को हटाकर इस स्थान को रहने योग्य बनाया और इसे इन्द्रप्रस्थ का नाम दिया गया। जिसे आप आज दिल्ली के नाम से जानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जिस स्थान पर खड़े होकर भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ने खाण्डेश्वर वन को हटाने के लिए अग्नि देवता से प्रार्थना कर अग्नि प्रज्वलित करी थी, उसी स्थान पर उन्होंने मिलकर एक शिवलिंग की स्थापना की थी और यही आज खाण्डेश्वर शिव मंदिर (शिवालय) के नाम से जाना जाता है।
शिवलिंग की स्थापना के बाद यहां काफी बरसात हुई और उसके बाद यहां सब कुछ हरा भरा हो गया ।
भगवान श्री कृष्ण ने यहां पर ब्रह्मा जी के सामने इसी शिव मंदिर में अपनी 16000 शादियों में से 16वीं शादी कालिंदी नामक लड़की से की, जो इसी गाँव की निवासी थी।
यहाँ गांव के पूर्व दिशा में यमुना नदी बहती है। जिसको नाव से पार उतरने के लिए मुरारी घाट से जाना पड़ता था। इसलिए इतिहास में इस गाँव का नाम कृष्ण मुरारी पड़ा। धीरे धीरे समय बदलता गया और मुग़ल काल में यह नाम बिगड़ते बिगड़ते बुराड़ी गांव हो गया।
जनश्रुतियों के अनुसार यह गाँव भगवान् श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली रहा है और वे यहाँ के यमुना घाट पर गाय चराने भी आते थे। बड़े बड़े साधू महात्मा व तपस्वी इसी मुरारी घाट पर तपस्या किया करते थे।
बुराड़ी का मध्यकालीन इतिहास
मुग़ल सम्राट नादिरशाह के युग में इस मंदिर की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। इसलिए बादशाह नादिरशाह ने धार्मिक वैमनस्य के कारण इस मंदिर को तुड़वा दिए था। उसके बाद लोगों ने अपनी पूजा अर्चना के लिए एक छोटे मंदिर को उसी जगह बनाया तथाएक बड़े मंदिर के रूप में यह मंदिर गाँव के बीचो बीच आज भी अपना मस्तक उठाये खड़ा है।
गाँव के एक बुजुर्ग श्री रमेश फौजी के अनुसार, सबसे पहले यह गांव कुम्हार जाति का निवास स्थल हुआ करता था। इस गाँव में केवल एक घर ब्राह्मण का था जो आज भी है। अब से लगभग 1370 साल पहले त्यागी समाज के दो लोग राजस्थान से श्री कालू और माहु ऊँट द्वारा इस गाँव में आये थे। जिन्होंने ब्राह्मण के घर में शरण ली। धीरे धीरे समय बीतता गया और एक हादसे में कालू कुंड में गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। माहु का विवाह इसी गाँव से उत्तर प्रदेश की रहने वाली एक लड़की से हुआ। लोगों के अनुसार आज जो त्यागी समाज गाँव में निवास कर रहा है वह माहु के ही वंशज हैं।
बुराड़ी का आधुनिक इतिहास
कहा जाता है कि यह गाँव दो बार उजड़कर बसा है। एक बार फिर उस गाँव पर विपदा आयी और यह गाँव उजड़ गया। इस बार जब गाँव बसा तो ये गढ़ी स्थित कीर बाबा की समाधि के इर्द गिर्द बसाया गया।
अब इस गांव में पंडितों और त्यागियों की जनसंख्या अधिक थी, उसके बाद कुम्हार आदि जाति के लोग थे। 6 पट्टी में बेस इस गाँव का क्षेत्रफल 160 बीघा 12 बिस्वा है। 1908 में इसका लाल डोरा निर्धारित हुआ। गाँव पूर्वी छोर पर बहती हुई यमुना नदी से पहले खारी कुंड वाले बाबा की समाधि बनी है। कहते हैं कि पहले इसकी बहुत मान्यता थी। लेकिन समय के साथ साथ गाँव से डोर होने के कारण लोगों का रुझान इस ओर से हट गया। गाँव के दक्षिण में स्थित पीर बाबा व वाल्मीकि मंदिर के आसपास हरिजन बस्ती, गढ़ी, जाटव बस्ती, एकता एन्क्लेव और समता विहार आदि कालोनियां बस गयी। इस तरह गांव का क्षेत्रफल का विकास होता गया और आज बुराड़ी एक विधानसभा क्षेत्र में तब्दील हो गया।
वर्तमान समय में बुराड़ी विधानसभा में निम्न वार्ड हैं –
बुराड़ी गाँव (Burari Village)
झरोदा (Jharoda)
कादीपुर (Kadipur)
कमालपुर (Kamalpur)
संतनगर (Sant Nagar)
मुकुंदपुर (Mukundpur)
शुरू से ही बुराड़ी (मुरारी) गाँव के लोग खेती के कार्यों से जुड़े रहे हैं और यही मुख्य आय का स्रोत रहा है । परन्तु समय के साथ जैसे जैसे यहाँ के किसानों और अन्य लोगो में जागरूकता बढ़ी, उन्होंने अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देना शुरू किया । जिसके चलते, आज खेती में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग होने लगा और साथ ही बहुत से बच्चे IAS, IPS आफिसर्स बनें।
गांव के बहुत से युवा देश भर में अच्छे अच्छे पदों पर हैं। कुछ खेलों में आगे बढे। कुछ अच्छे वकील बनें। कुछ अच्छे डॉक्टर बनें। कुछ ने देश से बाहर जाकर पढ़ाई करी। कुछ अच्छे शिक्षक बनें और कुछ ने अच्छे व्यवसाय चलाये जिससे अनेक लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है।
और ये सब हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है।
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